मैं देख रही कब से बाट
मैं देख रही कब से बाट
कहो क्या बात हुई
हो मेरा अब तक ना थाम हाथ
कहो क्या बात हुई
मैं देख रही कब से बाट
कहो क्या बात हुई।
पल पल बीते दिल घबरावे
हरि को मेरी सुध नहीं आवे
कहीं ना प्राण निकल तन जावे
हो मेरे आए न प्राणनाथ
कहो क्या बात हुई
मैं देख रही कब से बाट
कहो क्या बात हुई।
कब यह नैना पावें चैना
हरि दरस बिन पीड़ मिटें ना
बीत गए कई दिन कई रैना
लेकिन पिया नहीं मेरे साथ
कहो क्या बात हुई
मैं देख रही कब से बाट
कहो क्या बात हुई।
जिया न लागे बिन तुम्हारे
आए कैसे दिन हमारे
हम अभागे वियोग के मारे
हो कैसा यह लगा आघात कहो क्या बात हुई
मैं देख रही कब से बाट
कहो क्या बात हुई।
भजो राधे गोविंद! गोविंद राधे!
भजो राधे गोविंद! गोविंद राधे!
भजन केशव माधव बनवारी
भजो श्याम मोहन गिरिवर धारी
भजो राधे गोविंद! गोविंद राधे!
भजो राधा हृदय स्वामिनी
भजो लाडली श्यामा ब्रजरानी
भजो राधे गोविंद! गोविंद राधे!
भजो मुरलीधर मुकुंद गोपाला
भजो हरे कृष्ण दीन दयाला
भजो राधे गोविंद! गोविंद राधे!
भजो राधा राधा गोविंद प्यारी
भजो किशोरी ब्रजराज बिहारी
भजो राधे गोविंद! गोविंद राधे!
भजो राधावल्लभ जगत के स्वामी
भजो राधारमण हरि अंतर्यामी
भजो राधे गोविंद! गोविंद राधे!
पावन गोविंद तेरो नाम
पावन गोविंद तेरो नाम
उतारे भव से पार यही
संभाले बिगड़े काम
पावन गोविंद तेरो नाम
जब पड़ी विपदा भक्तों पे सबने
मुख पर यही नाम धारा
दीनों को दिया सहारा
यह बना रखवारा
निर्बल का बल है यही
निर्धन का कोटि दाम
पावन गोविंद तेरो नाम
बस कर मुख से सांसों तक यह
मन का मैल छुटाए
जो भी आता शरण में तेरी
उसको राह दिखाए
वृंदावन का श्याम यही
अयोध्या का श्री राम
पावन गोविंद तेरो नाम
हरि जी गिरधर राधे गोविंद
हरि जी गिरधर राधे गोविंद
गिरधर राधे गोविंद प्यारे
हरि जी गिरधर राधे गोविंद
ऐ मन! शरण में आजा, गोविंद गोपाल की,
जिस भ्रम में तु है खोया, सब चाल है माया की,
गोविंद ही तेरे अपने, गोविंद ही तेरे सखा हैं,
गोविंद ही जानें सब कुछ, क्या मन क्या काया की,
पाया भी तूने क्या था और खोया भी तूने क्या ही,
जान सके तो जान ले, लीला कृष्ण पिया की।
हरि जी गिरधर राधे गोविंद....
हे गोविंद गोपाल पिया जी, तुम ही मेरे सहारे,
देखो तो तनिक मुझको, आ गया तेरे द्वारे,
जन्मों से थी जो आशा, वो मेरी आस तुम ही हो,
तुम ही हो मेरे प्राणेश, तुम ही प्रियतम हमारे,
डूबे रहूं मैं तुझमें, ऐसा मुझे बना दो,
आऊं ना कभी होश में, चाहे जग कह कह हारे,
तुमने बहुतों को भव से तारा, बहुतों के भाग्य संवारे,
अब विनती करने मैं आया, सुनो घनश्याम प्यारे।
हरि जी गिरधर राधे गोविंद....
मेरे गोविंद गिरधर माधव मेरे
मेरे गोविंद गिरधर माधव मेरे
मैं तुम्हारी रहूं तुम रहो मेरे
एक तेरे सिवा कुछ दिखाई न दे
तुम ही हो मेरे प्राणों से चेरे
मेरे गोविंद गिरधर माधव मेरे
हर घड़ी मैं तेरी ही सदा पूजा करूं
नाम तेरा रटूं काज न दूजा करूं
हो भजन से सवेरा हो भजन से ही शाम
कोई चिंता दुविधा न मन को घेरे
मेरे गोविंद गिरधर माधव मेरे....
मैं जहां भी रहूं तुम मेरे साथ रहो
कुछ मेरी भी सुनो कुछ अपनी कहो
एक-एक दिन बरस बीते यूं ही
सफल हो मेरे जन्मों के फेरे
मेरे गोविंद गिरधर माधव मेरे....
मैं देखूं जहां भी तुमको ही पाऊं
मुझमें तुम ही बसो तुझमें मैं बस जाऊं
सदा संग रहेंगे एक दूजे के हम
चाहे सुख हो या हो विकट अंधेरे
मेरे गोविंद गिरधर माधव मेरे....
ऐ मेरे मुरारी मेरे कृष्ण हरि
मैं ऐसे ही देखूंगी तुमको पिया
तुमने केशव जो मेरा दिया साथ है
उसने पावन मुझ मलिन को किया
मेरे गोविंद गिरधर माधव मेरे....
प्राणों से सुंदर हरि राम रे! हरि राम रे!
प्राणों से सुंदर हरि राम रे! हरि राम रे!
सूरतिया निहारूं सुबह शाम रे! सुबह शाम रे!
आस लगाए तेरे द्वार खड़ी नंदलाला----नंदलाला
आए चरण लगा लो मुरलीवाला----मुरलीवाला
जिन चरणों से तरे हैं हजारों
ऐसे चरणों में मेरा प्रणाम रे ----हरे कृष्णा!
प्राणों से सुंदर हरि राम रे! हरि राम रे!
विनती सुन लो बेचैन तुम बिन हे मुरारी----मुरारी
देखो नहीं मेरे अवगुण हे गिरधारी----गिरधारी
पीड़ मिटाए अब दया करो दयानिधि
रटूं सदा कृष्ण नाम रे----हरे कृष्णा!
प्राणों से सुंदर हरि राम रे! हरि राम रे!
मेरी हर सांस पे तेरा नाम ठहरे
मेरी हर सांस पे तेरा नाम ठहरे
गोविंद मुरलिया वाले मेरे
गोविंद मुरली वाले, गोपाल मुरलिया वाले
निरख छवि बलिहार मैं जाऊंगी---- हां बलिहार मैं जाऊंगी
परम सनेही मन मीत मैं पाऊंगी----हां मन मीत मैं पाऊंगी
हो कटेंगे जनम मरण के फेरे
गोविंद मुरलिया वाले मेरे
मेरी हर सांस पे तेरा नाम ठहरे....
व्याकुल हैं हरि प्राण तुम बिन----हां प्राण तुम बिन
नैना तरसे बरसे निस दिन---- हां बरसे निस दिन
हो यह जीवन किया नाम तेरे
गोविंद मुरलिया वाले मेरे
मेरी हर सांस पे तेरा नाम ठहरे....
जग माया मोहे न सरै री---- हां न सरै री
भटक भटक मेरी विपदा बढै़ री----हां विपदा बढै़ री
हो झूठे सकल जगत हिंडोरे
गोविंद मुरलिया वाले मेरे
मेरी हर सांस पे तेरा नाम ठहरे....
हे राधा माधव! सुध लो मोरी---- हां सुध लो मोरी
यह प्रीत न जाए मुझसे तोरी---- हां मुझसे तोरी
हो विनती करूं हाथ जोरे
गोविंद मुरलिया वाले मेरे
मेरी हर सांस पे तेरा नाम ठहरे....
शरद पूनम की रात
शरद पूनम की रात,
गगन पर चंदा मुस्काए
सजे अनुपम श्याम,
सांवरियां यमुना तट आए
मलयज् सौरभ मण्डित पग पग,
चलत समीर भुलाई
जुही मल्लिका रजनीगन्धा की,
कण कण बास समाई
पंकज कोश खिले बिन तरणि,
भंवरन भीड़ बढ़ाई
कदली स्वर्णलता उर झरनी,
मानो लेत बलाई।
बजी मुरलिया तान मधुर,
कसक ह्रदय जाए
शरद पूनम की रात,
गगन पर चंदा मुस्काए
सजे अनुपम श्याम,
सांवरियां यमुना तट आए।
शिवशंकर छाड़ दियो डमरू,
तजि वीणा को शारदा भाजन लागि
ध्वनि पूरी गई पाताल-नभ में,
ऋषि नारद सिर गाजन लागि
जड़-जंगम् मोहि लिए सबहि,
यमुना जल रोक के राजन लागि
हरे कृष्ण जब हैं ब्रजमंडल में,
ब्रिजराज की बाँसुरी बाजन लागि।
बाँसुरी की तानन के कानन में पड़त ही,
जो जस रही सोहि भागी तस रीत में
ऐ री तन को संभार भूल्यौं,
कुल को खंगार भूल्यौं
काल को विचार भूल्यौं,
यामिनी भयभीत में
वे चली बरबस होके,
रुकी ना काहू के रोके
विवश पुरंजीवी ने,
सारंगी के गीत में
ललित विहारिणी वे,
पीवन पीयूष पहुँची
प्राणन ते प्यारे,
पिया प्रियतम की प्रीत में।
फल आई युगों की साधना,
कालिंदी तट भीर
मुरलिया बाजी रे बाजी रे,
बाजी यमुना तीर।
विकल भयी ब्रज गोरी ललना,
निकसी सदन बिसारी
धरत कहूँ पग परत कहूँ पग,
प्रेम की लीला न्यारी
उलट पलट श्रृंगार बनाएं,
पगली भयी बेचारी
कुए भाँग पड़ी गोकुल में,
प्रेम की लीला न्यारी।
खिंची जात मुरली बरबस,
विकट प्यार की पीर
मुरलिया बाजी रे! बाजी रे!
बाजी यमुना तीर।
बढ़ती हुई घोर विभावरी में
सब एक ही संग से ढाई हो क्यों
वन में पशु जंतु घूमते हैं
ब्रज व्याधि से मार्ग बचाई हो क्यों
किसी राक्षस ने उत्पात किया
सुर वज्र निपाट बचाई हो क्यों
कहो शीघ्रता से कहो बात है क्या
इतनी यहां रात में आई हो क्यों?
तकते तकते बात युगन सों
आई स्वर्णिम बेला
चिर से बिछड़ी विरहणियों का
हुआ अनुपम मेला
भाग्य बड़े बलिहारी इनके
रसिया मिला नवेला
कोटिन नेह कुंज कलियंन में
मधुकर श्याम अकेला।
ऐसा रस बरसा मधुबन में
नाचत पीकूष कीर
मुरलिया बाजी रे! बाजी रे!
बाजी यमुना तीर।
देव किन्नर गंधर्व यक्ष गण
मधुरागी पछताए
शिव गए कैलाश छोड़कर
गोपी रूप धर आए
द्वै-द्वै गोपी बीच-बीच माधव
मंडल रास बनाए
आनंद घन घट गरज गरज कर
प्रेम बूंद बरसाए
भयी छमासी रैन चंद्र
नव मंडल हरसाए।
शरद पूनम की रात,
गगन पर चंदा मुस्काए
सजे अनुपम श्याम,
सांवरियां यमुना तट आए।