श्री कृष्ण पदावली

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मीराबाई

मीराबाई

परिचय

मीराबाई, 16वीं शताब्दी की महान भक्ति संत और कवियत्री थीं। वे राजपूताना की रानी थीं, जो अपने समय में साहसिकता, विशेष रूप से उनके भक्तिभाव और भगवान के प्रति अपने प्रेम के लिए प्रसिद्ध थीं। मीराबाई की कविताएं और उनका जीवन उनकी विशेषता और अनूठापन को दर्शाते हैं।

मीराबाई ने भक्ति और संगीत के माध्यम से अपनी भक्ति अद्भुतता से व्यक्त की थी। उनकी कविताओं में श्रीकृष्ण के प्रति उनका अत्यंत संवेदनशील प्रेम प्रकट होता है। उनकी कविताओं में धर्म, प्रेम, और समाज के महत्त्वपूर्ण संदेश होते हैं।

मीराबाई का विचार था कि भगवान के प्रति उनका प्रेम और भक्ति सबका एक जैसा होता है, चाहे वो श्रीकृष्ण हों या खुदा। उनकी कविताएं इस विचार को प्रकट करती हैं और मानवता को समानता, प्रेम और धार्मिकता की ओर प्रेरित करती हैं।

जीवनी

मीराबाई का जन्म सन् 1498 में मेरठ के नानीवाल में हुआ था। उनके पिता रतन सिंह राठौड़ राजपूत के राजा भोजराज सिंह की बहन के पुत्र थे। उन्होंने अपनी बाल्यकाल से ही भगवान कृष्ण के प्रति अपनी अद्भुत प्रेम भावना को प्रकट किया था।

मीराबाई की शादी 16वर्षीय उनके परिवार के शासक बापा राजा राणा संगा से हुई थी, जो राजपूताना के उदयपुर के महाराणा थे। उनके पति का मृत्यु उनके जीवन के बाद का समय प्रभावित करता है, जिसने उन्हें भगवान कृष्ण के प्रति और भक्ति में अधिक लगाव दिया।

मीराबाई की कविताएं और गाने भक्ति और प्रेम की अनूठी भावना को प्रकट करते हैं। उन्होंने समाज में जाति और धर्म के मामले में नये दरवाजे खोले और स्त्री शक्ति को महत्त्वपूर्ण माना। मीराबाई की रचनाएं आज भी हमें उनके विश्वास, समर्थन, और प्रेम की ओर बढ़ते हुए ले जाती हैं।

रचनाएँ